BA Semester-1 Pracheen Bhartiya Itihas - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2636
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

प्रश्न- वैदिक देवताओं पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।

अथवा
वैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
वैदिक धर्म पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

वैदिककालीन धर्म के विषय में जानकारी मुख्यतः वेदों से होती है। आरम्भ में आर्यों का धर्म बहुत सरल था, किन्तु बाद में पुरोहितों की चेष्टा के कारण उसमें जटिलता आती चली गई। वैदिक देवता प्रकृति की शक्तियों के कल्पनात्मक मूर्त मानव रूप थे। जगत् की एक ही मूल महाशक्ति को प्रकृति के विभिन्न अभिव्यक्त रूपों में देवशक्ति मानते थे।

ऋक्वैदिक देवताओं की गणना द्यावा पृथिवी से शुरु करनी चाहिए। 'द्यौः' का अर्थ आकाश है और 'वरुण' भी उसी का एक रूप है, अर्थात् उसकी ज्योति का सूचक। वरुण धर्मपति है। वह पुण्य का देवता है। वह पाशधर है। नदियों और समुद्रों का वही अधिपति है। द्यावापृथिवी और 'वरुण' की अपेक्षा इन्द्र की महिमा अधिक है। वृष्टि का अधिष्ठातृदेव होने के कारण वह सम्पत्ति का मूल है। उसके हाथ में बिजली का वज्र है, जिससे वह वृत्र का संहार करता है। इन्द्र शक्तिशाली देवता है और युद्धों में आर्यों का नेतृत्व करता है। 'उषा' की कल्पना तो बड़ी ही महत्त्वपूर्ण है। प्रभात के समय उषा एक सुन्दरी के रूप में प्रकट होती है और सूर्य उसका अनुगमन करता है, ठीक उसी प्रकार जैसे एक युवा किसी स्त्री का 'सूर्य' ही 'मित्र' है। मित्र का नाम प्रायः वरुण के साथ लिया जाता है- 'मैत्रावरुण' के रूप में। सूर्य जब समस्त पृथिवी और अन्तरिक्ष में अपनी रश्मियाँ फैलाकर जगत को जीवन देता है, तब वही 'सविता' देवता है। 'सविता' और 'पूषा' दोनों ही सूर्य की उत्पादन-शक्ति को सूचित करते हैं। पूषा पशुओं और वनस्पतियों का देवता है। सूर्य के भिन्न गुणों से कई प्रकार के देवताओं की कल्पना हुई है। 'अश्विनौः' प्रातः काल और सायंकाल के तारे हैं। 'विष्णु' की कल्पना का विवरण भी मिलता है। 'रुद्र' की कल्पना प्रकृति के भयंकर और घातक अधिष्ठातृदेव के रूप में हुई है। 'मरुत' और 'वायु' का वर्णन रुद्र के सहायक के रूप में किया गया है। 'यजुर्वेद' के 'शतरुद्रियप्रकरण' में रुद्र की कल्पना और अधिक मूर्त रूप में आई है। वह पशुपति अथवा दिशाओं का पति है। वह 'शर्व' और 'कदर्पी' है। प्रसन्न होने पर जब वह अपने मंगल रूप को प्रकट करता है, तब वह शंभु, शंकर और शिव होता है। रुद्र को गण और गणपति भी कहा गया है।

'अग्नि' और 'सोम' की महिमा इन्द्र से कम नहीं है। अग्नि के तीन रूप हैं सूर्य, विद्युत और अग्नि या मातारिश्वा। सोम मूलतः वनस्पति था, पीछे उसमें चन्द्रमा का भी अर्थ आ गया। प्रारम्भ में सोम और सविता का विशेषणमात्र प्रजापति था, बाद में वह भी एक मूर्त देवता हो गया। गणदेवता के रूप में 'मरुत', 'आदित्य', 'वसवः', 'रुद्र' आदि प्रसिद्ध हैं। सरस्वती, पर्जन्य, आपः, उषा आदि भी देवता के रूप में वर्णित हैं। वेद के अनुसार समस्त संसार पहले जलमय था और उसी के बाद संसार की सृष्टि हुई। प्राचीनतम वैदिक धर्म उपासना प्रधान और सरल था। वर्षा, विद्युत, धूप, सूर्य आदि नाना शक्तियों से भयभीत होकर लोग उनकी स्तुति के लिए मन्त्र पढ़ते थे। देव का अर्थ है द्योतनशील अथवा दीप्तिमय एक ही ईश्वर का रूप हम विभिन्न शक्तियों में देखते हैं। पूर्ववैदिक युग में नैतिक आदर्श और मानव चरित्र पर विशेष जोर दिया गया है। आर्यों ने स्पष्ट शब्दों में एकेश्वरवाद की घोषणा की और 'हिरण्यगर्भसूक्त' में एकेश्वरवाद का सुन्दर प्रतिपादन हुआ है।

ऋग्वेद में प्रकृति की उपासना है और प्रधान देवता प्राकृतिक शक्तियों के व्यक्तित्व में ही अपना उद्गम पाते हैं। पाप के ज्ञान और दैवी क्षमाशीलता के विश्वास के साथ वरुण की उपासना आगे के भक्ति- सिद्धान्त के मूलों में से एक है। कुछ मन्त्र तो विश्व की एकता की भावना का पूर्वाभास देते हैं और इस विश्वास को व्यक्त करते हैं कि ईश्वर एक हैं, यद्यपि उसके बहुत से नाम हैं। 'द्यौः पृथ्वी' की कल्पना के द्वारा आर्यों ने प्रथम चरण में इस दैवी नारी पुरुष के युग्म से ही सम्पूर्ण विश्व की सृष्टि की कल्पना की। प्रकृति की दो शक्तियों का यह सरलतम मानवीकरण था। भक्तिमूलक वैष्णव धर्म का सम्बन्ध ऋग्वेद के 'वरुणस्तोत्र' से है। आर्यों ने बहिर्जगत् के प्रकाश का मानवीकरण करके उसे मित्र का नाम दिया। 'मित्रवरुण' युग्म में मित्र ज्योतिर्मय पुरुष है और वरुण कृष्ण प्रकृति।

आर्यों ने अपने देवी-देवताओं की कल्पना मानव के रूप में की थी। उनमें नैतिकता थी। वे के पाषक थे। ऋत देवताओं का भी नियामक था। द्यावापृथिवी ऋतुशील थे। विष्णु ऋत का उद्गम था। मरुतों का प्रादुर्भाव ऋत से ही हुआ था। उषा ऋतु मार्ग का ही अनुगमन करती है। सम्पूर्ण विश्व ऋत पर आधारित है। लोगों की भौतिक समृद्धि एवं जीवनयापन के अन्य साधन 'ऋत्' के द्वारा प्राप्त होते थे और वरुण को व्रतस्यगोप कहा गया है। पासा खेलकर 'ऋत' की रक्षा और स्थापना होती थी और इससे यह तात्पर्य निकलता है कि सम्पत्ति की सामूहिकता के द्वारा न्याय एवं ऋत की स्थापना होती थी। 'ऋत' की अवधारणा प्राक-वर्गीय समाज के अनुरूप थी।

आर्य एकेश्वरवाद के समर्थक थे। ऋग्वेद में इस सम्बन्ध में कहा गया है, "सत् एक ही है, विद्वान् उसे ही विभिन्न नामों से पुकारते हैं।" ऋग्वेद में बहुदेववाद, एकात्मवाद और एकेश्वरवाद के प्रमाण मिलते हैं। आर्य लोग गृहत्याग और संन्यास के पक्ष में नहीं थे। न तो उनमें पलायनवाद था और न मोक्ष प्राप्त करने की कोई आतुरता ही। उनमें ऐहिक जीवन से अनुराग था और उनका ऐहिक जीवन उल्लासमय था। स्तुति और यजन ही उनकी देवपूजा थे। प्रत्येक देवता के लिए भिन्न-भिन्न ऋचाएँ थी और स्तुति की विधि भी अति सरल थी। यज्ञ की प्रधानता था। यज्ञ हिंसात्मक और अहिंसात्मक दोनों ही होता था। देव- -पूजा के साथ पितरों की पूजा भी होती थी। ऋग्वेद में एक स्थान पर देव और पितरों का साथ-साथ उल्लेख किया गया है। जादू-टोने की निन्दा की गई है। स्वर्ग और नरक की कल्पना भी पूर्ववैदिक काल में हो चुकी थी। अमरता का उल्लेख तो ऋग्वेद में है, परन्तु मोक्ष का नहीं। आत्मा और पुनर्जन्म के सम्बन्ध में भी उस काल का विचार संदिग्ध है।

उत्तर वैदिक काल में आकर ऋक् वैदिक धर्म में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आ गए। इस काल में ऋक्वैदिक कालीन सर्वोच्च देवता इन्द्र का स्थान प्रजापति ने ले लिया अर्थात् इन्द्र की महत्ता घट गई और प्रजापति की महिमा बढ़ने लगी। प्रजापति द्वारा वराहरूप में पृथ्वी धारण तथा कूर्म बनने की कथा इस युग में चल पड़ी और यही बाद में अवतारों के क्रम का मूल बनी। रुद्र की भी महिमा बढ़ी। रुद्र और शिव का समन्वय हुआ। विष्णु के तीन पगों की कल्पना का विकास भी इसी युग में हुआ। याज्ञिक कर्मकाण्ड की जटिलता बढ़ गई। इसकी विस्तृत विधियाँ बनी और आडम्बर बढ़ने लगा। राजसूय, वाजपेय और अश्वमेघ प्रधान यज्ञ हुए। यज्ञों में पशुबलि की प्रथा बढ़ गई। पशुबलि के विरुद्ध भी एक लहर चली। राजा वसु के समय इस पर बड़ा विवाद हुआ। ऋषि अन्न की आहुति देना चाहते थे और देवता बकरा माँगते थे। वसु ने देवताओं के पक्ष में फैसला दिया। उपनिषद् युग में ज्ञानमार्ग पर जोर दिया जाने लगा। यज्ञ की दक्षिणा के रूप में तपश्चर्या, दान, आर्जव, अहिंसा और सत्य को महत्त्व दिया गया। मुण्डकोपनिषद् में यज्ञ की तुलना फूटी नाव से हुई। अब मुक्ति, कर्मवाद और पुनर्जन्म पर विशेष जोर दिया जाने लगा।

उत्तर वैदिककाल में मन्त्रों का महत्त्व बढ़ने लगा। पुरोहितों के मान और प्रतिष्ठा में बड़ी वृद्धि हुई। यज्ञों की विधि भी जटिल हो गई। इन्द्र, वरुण और पृथिवी का स्थान प्रजापति, विष्णु और शिव ने ले लिया। रुद्र की महिमा भी बढ़ गई। आडम्बर बहुत बढ़ जाने के कारण यज्ञ करना धनाढ्यों का काम हो गया। ये यज्ञ पुरोहितों द्वारा होते थे। इसके फलस्वरूप पुरोहितों की एक श्रेणी बनती गई। देवों के अतिरिक्त पितरों का तर्पण - श्राद्ध भी प्रारम्भ हो गया। श्राद्ध की प्रथा पहले-पहल दत्तात्रेय ऋषि के बेटे निमि ने चलाई थी। मृत्योपरान्त स्थिति के सम्बन्ध में अभी विचार संदिग्ध ही था, किन्तु अन्धविश्वास की प्रवृत्ति बढ़ने लगी थी। जाटू-टोने और भूत-प्रेत में लोगों को विश्वास होने लगा। एकेश्वरवादी और अद्वैतवादी प्रवृत्तियाँ अब स्पष्ट होने लगीं। रुद्र- शिव का समन्वय इसी युग में हुआ। शिव को अब महादेव कहा जाने लगा। कर्मकाण्ड को ब्राह्मणों ने अत्यन्त जटिल बना डाला और इससे धर्मानुष्ठान क्रियाओं की एक अटूट परम्परा बन गई। कर्मकाण्ड के विकास के साथ-साथ पुरोहितों की संख्या भी बढ़ चली और अब होतृ, उद्गातृ, अध्वर्यु और ब्रह्मन् में से प्रत्येक के अनेक सहकारी हो गए थे। उत्तरवैदिक काल में बौद्धिक चिन्तन आगे बढ़ा। षड्दर्शनों का बीजारोपण भी इसी काल में हुआ। अवतारवाद के सिद्धान्त का उस प्रजापति की कहानियों से अनुमान लगाया जा सकता है, जिसने शूकर का रूप धारण कर पृथ्वी को पाताल के जल से ऊपर उठाया और जो सृष्टि निर्माण के समय कच्छप हो गया। अध्यात्मविद्या का प्रसार भी इसी काल में हुआ। “भागवतसम्प्रदाय" के मूल में जो सिद्धान्त अवस्थित हैं, उनका भी बीजारोपण इसी काल में हुआ।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों / लेखकों के विवरण की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  4. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?
  6. प्रश्न- भास की कृति "स्वप्नवासवदत्ता" पर एक लेख लिखिए।
  7. प्रश्न- 'फाह्यान पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  8. प्रश्न- दारा प्रथम तथा उसके तीन महत्वपूर्ण अभिलेख के विषय में बताइए।
  9. प्रश्न- आपके विषय का पूरा नाम क्या है? आपके इस प्रश्नपत्र का क्या नाम है?
  10. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  12. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  13. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए
  14. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में आप क्या समझते हैं?
  15. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के सामाजिक व्यवस्था व आर्थिक जीवन का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सिन्धु नदी घाटी के समाज के धार्मिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था एवं कला का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  23. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  25. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  26. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  27. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता में शिवोपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- सैन्धव धर्म में स्वस्तिक पूजा के विषय में बताइये।
  30. प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?
  31. प्रश्न- विवाह संस्कार से सम्पादित कृतियों का वर्णन कीजिए तथा महत्व की व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- वैदिक काल के प्रमुख देवताओं का परिचय दीजिए।
  33. प्रश्न- ऋग्वेद में सोम देवता का महत्व बताइये।
  34. प्रश्न- वैदिक संस्कृति में इन्द्र के बारे में बताइये।
  35. प्रश्न- वेदों में संध्या एवं ऊषा के विषय में बताइये।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में जल की पूजा के विषय में बताइये।
  37. प्रश्न- वरुण देवता का महत्व बताइए।
  38. प्रश्न- वैदिक काल में यज्ञ का महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- पंच महायज्ञ' पर टिप्पणी लिखिए।
  40. प्रश्न- वैदिक देवता द्यौस और वरुण पर टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- वैदिक यज्ञों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- वैदिक देवता इन्द्र के विषय में लिखिए।
  43. प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
  44. प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  45. प्रश्न- वैदिक काल में प्रकृति पूजा पर एक टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- वैदिक संस्कृति की विशेषताएँ बताइये।
  47. प्रश्न- अश्वमेध पर एक टिप्पणी लिखिए।
  48. प्रश्न- आर्यों के आदिस्थान से सम्बन्धित विभिन्न मतों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में आर्यों के भौगोलिक ज्ञान का विवरण दीजिए।
  50. प्रश्न- आर्य कौन थे? उनके मूल निवास स्थान सम्बन्धी मतों की समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- वैदिक साहित्य से आपका क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख अंगों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- आर्य परम्पराओं एवं आर्यों के स्थानान्तरण को समझाइये।
  53. प्रश्न- वैदिक कालीन धार्मिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- ऋत की अवधारणा का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- वैदिक देवताओं पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- ऋग्वैदिक धर्म और देवताओं के विषय में लिखिए।
  57. प्रश्न- 'वेदांग' से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
  58. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन समाज में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  60. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में शासन प्रबन्ध का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के शासन प्रबन्ध की रूपरेखा पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- वैदिक कालीन आर्थिक जीवन का विवरण दीजिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य पर एक निबंध लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक कालीन लोगों के कृषि जीवन का विवरण दीजिए।
  65. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल के पशुपालन पर टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- वैदिक आर्यों के संगठित क्रियाकलापों की विवेचना कीजिए।
  68. प्रश्न- आर्य की अवधारणा बताइए।
  69. प्रश्न- आर्य कौन थे? वे कब और कहाँ से भारत आए?
  70. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में वेदों का महत्त्व बताइए।
  71. प्रश्न- यजुर्वेद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- ऋग्वेद पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- वैदिक साहित्य में अरण्यकों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- आर्य एवं डेन्यूब नदी पर टिप्पणी लिखिये।
  75. प्रश्न- क्या आर्य ध्रुवों के निवासी थे?
  76. प्रश्न- "आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया था।" विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- संहिता ग्रन्थ से आप क्या समझते हैं?
  78. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  79. प्रश्न- पणि से आपका क्या अभिप्राय है?
  80. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन उद्योग-धन्धों पर टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- क्या वैदिक काल में समुद्री व्यापार होता था?
  84. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  85. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में प्रचलित उद्योग-धन्धों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए?
  86. प्रश्न- शतमान पर एक टिप्पणी लिखिए।
  87. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- भारत में लोहे की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्थिक जीवन पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- वैदिककाल में लोहे के उपयोग की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- नौकायन पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- सिन्धु घाटी की सभ्यता के विशिष्ट तत्वों की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोग कौन थे? उनकी सभ्यता का संस्थापन एवं विनाश कैसे.हुआ?
  94. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की आर्थिक एवं धार्मिक दशा का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- वैदिक काल की आर्यों की सभ्यता के बारे में आप क्या जानते हैं?
  96. प्रश्न- वैदिक व सैंधव सभ्यता की समानताओं और असमानताओं का विश्लेषण कीजिए।
  97. प्रश्न- वैदिक कालीन सभा और समिति के विषय में आप क्या जानते हैं?
  98. प्रश्न- वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के कालक्रम का निर्धारण कीजिए।
  100. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार की विवेचना कीजिए।
  101. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता का बाह्य जगत के साथ संपर्कों की समीक्षा कीजिए।
  102. प्रश्न- हड़प्पा से प्राप्त पुरातत्वों का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- हड़प्पा कालीन सभ्यता में मूर्तिकला के विकास का वर्णन कीजिए।
  104. प्रश्न- संस्कृति एवं सभ्यता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  105. प्रश्न- प्राग्हड़प्पा और हड़प्पा काल का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- प्राचीन काल के सामाजिक संगठन को किस प्रकार निर्धारित किया गया व क्यों?
  107. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  109. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  110. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  112. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- वैष्णव धर्म के उद्गम के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  115. प्रश्न- पुरातत्व अध्ययन के स्रोतों को बताइए।
  116. प्रश्न- पुरातत्व साक्ष्य के विभिन्न स्रोतों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- पुरातत्वविद् की विशेषताओं से अवगत कराइये।
  118. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  119. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  120. प्रश्न- पुरातात्विक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के लाभों से अवगत कराइये।
  121. प्रश्न- पुरातत्व को जानने व खोजने में प्राचीन पुस्तकों के योगदान को बताइए।
  122. प्रश्न- विदेशी (लेखक) यात्रियों के द्वारा प्राप्त पुरातत्व के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  123. प्रश्न- पुरातत्व स्रोत में स्मारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  125. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  126. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  127. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- "सभ्यता का पालना" व "सभ्यता का उदय" से क्या तात्पर्य है?
  129. प्रश्न- विश्व में नदी घाटी सभ्यता के विकास पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- चीनी सभ्यता के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  131. प्रश्न- जियाहू एवं उबैद काल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- अकाडिनी साम्राज्य व नॉर्ट चिको सभ्यता के विषय में बताइए।
  133. प्रश्न- मिस्र और नील नदी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  134. प्रश्न- नदी घाटी सभ्यता के विकास को संक्षिप्त रूप से बताइए।
  135. प्रश्न- सभ्यता का प्रसार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  136. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार के विषय में बताइए।
  137. प्रश्न- मेसोपोटामिया की सभ्यता पर प्रकाश डालिए।
  138. प्रश्न- सुमेरिया की सभ्यता कहाँ विकसित हुई? इस सभ्यता की सामाजिक संरचना पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालिए।
  139. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता के भारतवर्ष से सम्पर्क की चर्चा कीजिए।
  140. प्रश्न- सुमेरियन समाज के आर्थिक जीवन के विषय में बताइये। यहाँ की कृषि, उद्योग-धन्धे, व्यापार एवं वाणिज्य की प्रगति का उल्लेख कीजिए।
  141. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  142. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की लिपि का विकासात्मक परिचय दीजिए।
  143. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  144. प्रश्न- प्राचीन सुमेरिया में राज्य की अर्थव्यवस्था पर किसका अधिकार था?
  145. प्रश्न- बेबीलोनिया की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता की सामाजिक.विशिष्टताओं का उल्लेख कीजिए।
  146. प्रश्न- बेबीलोनिया के लोगों की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  147. प्रश्न- बेबिलोनियन विधि संहिता की मुख्य धाराओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- बेबीलोनिया की स्थापत्य कला पर प्रकाश डालिए।
  149. प्रश्न- बेबिलोनियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  150. प्रश्न- असीरियन कौन थे? असीरिया की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख करते हुए बताइये कि यह समाज कितने वर्गों में विभक्त था?
  151. प्रश्न- असीरिया की धार्मिक मान्यताओं को स्पष्ट कीजिए। असीरिया के लोगों ने कला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में किस प्रकार प्रगति की? मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- प्रथम असीरियाई साम्राज्य की स्थापना कब और कैसे हुई?
  153. प्रश्न- "असीरिया की कला में धार्मिक कथावस्तु का अभाव है।' स्पष्ट कीजिए।
  154. प्रश्न- असीरियन सभ्यता के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  155. प्रश्न- प्राचीन मिस्र की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? मिस्र का इतिहास जानने के प्रमुख साधन बताइये।
  156. प्रश्न- प्राचीन मिस्र का समाज कितने वर्गों में विभक्त था? यहाँ की सामाजिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  157. प्रश्न- मिस्र के निवासियों का आर्थिक जीवन किस प्रकार का था? विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- मिस्रवासियों के धार्मिक जीवन का उल्लेख कीजिए।
  159. प्रश्न- मिस्र का समाज कितने भागों में विभक्त था? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- मिस्र की सभ्यता के पतन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  161. प्रश्न- चीन की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता के इतिहास के प्रमुख साधनों का उल्लेख करते हुए प्रमुख राजवंशों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  162. प्रश्न- प्राचीन चीन की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
  163. प्रश्न- चीनी सभ्यता के भौगोलिक विस्तार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  164. प्रश्न- चीन के फाचिया सम्प्रदाय के विषय में बताइये।
  165. प्रश्न- चिन राजवंश की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।

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